छठ महापर्व लोक आस्था का प्रतीक है। इसमें सूर्य देव और छठी माता की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी माता सूर्य देव की बहन हैं। यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और यह पर्व 4 दिन का होता है। नहाए खाए के साथ इसकी शुरुआत होती है, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्ध्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्ध्य देकर इस पर्व का समापन होता है। मुख्य तौर पर यह पर्व उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे इस पर्व को किसी भी समुदाय के लोग कर सकते हैं। छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा विधि विधान से की जाती है। पौराणिक कथाओं में इस पर्व का जिक्र बड़े अच्छे से किया गया है। सतयुग में भगवान श्री राम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी।
श्री राम और सीता ने की थी सूर्य उपासना…
भगवान श्री राम जब लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे तब भगवान श्री राम और माता सीता ने रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि मुनियों के आदेश पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।
दानवीर कर्ण प्रारंभ की सूर्य देव की पूजा…
जैसा कि हम जानते हैं दानवीर कर्ण सूर्य देव के पुत्र थे। वे प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह ज्ञात होता है कि सबसे पहले करण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह हर रोज स्नान करने के बाद नदी में जाकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने।
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छठ पूजा की कहानी
द्रोपदी पांडवों के लिए रखी थी व्रत…
पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ व्रत प्रारंभ को द्रौपदी से भी जोड़ा जाता है। द्रोपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए इस व्रत को रखा था और सूर्यदेव की उपासना की थी। इसके फलस्वरूप पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया था।
प्रियव्रत नामक राजा ने भी रखा था व्रत…
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रियव्रत नामक राजा नि:संतान थे। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने बहुत कोशिश की लेकिन उसका उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ। तभी संतान प्राप्ति के लिए उस राजा को महर्षि कश्यप ने पुत्रयेस्ति यज्ञ करने का सलाह दिया। यज्ञ के बाद महारानी के गर्भ से एक पुत्र प्राप्त हुआ लेकिन वह बच्चा मृत था। ऐसा कहा जाता है कि जब राजा अपने उस मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे तभी उस वक्त आसमान से एक ज्योतिर्मयी विमान धरती पर उतरा जिसमें देवी बैठे हुए थे। देवी ने कहा,”मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं”। इतना कहकर देवी ने उस मृत बच्चे के शरीर को स्पर्श किया और वह बच्चा जीवित हो गया। इसके बाद से राजा ने अपने राज्य में यह पर्व मनाने की घोषणा कर दी।
बिहार में छठ पूजा क्यों मनाया जाता है | बिहार में क्यों प्रसिद्ध है छठ पूजा ?
महाभारत काल से ही बिहार में छठ पूजा की प्रथा जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं से ऐसा ज्ञात होता है कि सूर्यपुत्र कर्ण का संबंध बिहार के भागलपुर से था। कर्ण बड़ी सच्ची श्रद्धा से सूर्य देव की उपासना करते थे। वह प्रतिदिन पानी में घंटों तक रहकर भगवान सूर्य को अर्ध्य देते थे। यह भी माना जाता है कि कर्ण षष्ठी और सप्तमी तिथि को सूर्य देव की विशेष आराधना करते थे। इसलिए बिहार में यह पर्व बहुत ही प्रचलित है। यहां के लोग इसे भक्ति और धूमधाम से मनाते हैं।
सूर्य को अर्घ्य क्यों दिया जाता है ?
सूर्य आरोग्य, यश, सुख और शांति प्रदान करते हैं। सूर्य की सतरंगी किरणों में अद्भुत रोग नाशक शक्ति है। कहा जाता है कि जब उगते सूर्य या डूबते सूर्य को हाथ की अंजुली में जल रखकर तथा गायत्री मंत्र या सूर्य की उपासना मंत्र बोलते हुए सूर्य की ओर मुख करके अर्घ्य दिया जाता है तो लोगों की सारी कठिनाई दूर हो जाती है और उन्हें सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
डूबते सूर्य को अर्घ्य क्यों देते हैं ?
ऐसा माना जाता है कि शाम के वक्त भगवान सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं और उस वक्त वह बहुत प्रसन्न भाव में रहते हैं। इसके परिणाम स्वरूप व्रत रखकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से सुख सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई ?
मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के बहुत बड़े भक्त थे। वह प्रतिदिन पानी में घंटों खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे।
छठी माता कौन हैं ?
मान्यता है कि छठी माता सूर्य देव की बहन हैं। उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य और जल की महत्ता को मानते हुए इन्हें साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना की जाती है तथा उनका धन्यवाद किया जाता है। छठी माता बच्चों की रक्षिका हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है।